कुंडलिया
“कुंडलिया”
बंसी मेरे बीच में, क्यों आती है बोल
कान्हा की परछाइयाँ, घूम रही मैं गोल
घूम रही मैं गोल, राधिका बरसाने की
मत कर री बेहाल, उमर है हरषाने की
कह गौतम कविराय, मधुर बन पनघट जैसी
छोड़ अधर रसपान, कृष्ण की प्यारी बंसी।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी