दोहा गीतिका
“दोहा गीतिका”
री बसंत क्यों आ गया लेकर रंग गुलाल
कैसे खेलूँ फाग रस, बुरा शहर का हाल
चिता जले बाजार में, धुआँ उड़ा आकाश
गाँव घरों की क्या कहें, राजनगर पैमाल।।
सड़क घेर बैठा हुआ, लपट मदारी एक
मजा ले रही भीड़ है, फुला फुला कर गाल।।
कहती है अधिकार से, लड़कर लूँगी राज
गलत सही कुछ भी कहो, मैं हूँ मालामाल।।
सत्याग्रह के नाम पर, खेल रही हूँ खेल
बैठ गई तो क्यों हटूँ, चढ़ा रंग जब लाल।।
मेरा भी ऋतुराज है, महकाता है फूल
है हीरे का पारखी, मुफ्त लुटाए माल।।
जली होलिका अगन में, थी मंशा बीमार
गौतम सुन प्रह्लाद का, बाँका हुआ न बाल।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी