लघुकथा

ठण्डी आह

मम्मी हमें गरीबों की मदद करनी चाहिए।हाँ बेटा,जरूर करनी चाहिए।वे भी हमारे समाज का अभिन्न अंग है।मम्मी आप सच कह रही हो।हाँ बेटा,मेरा विश्वास करों।मेरा मन तो किसी भी गरीब को देखकर द्रवित हो उठता है।मेरा बस चले तो मैं हर गरीब की मदद करूँ।पति,श्याम।माँ बेटी की बात बड़े ध्यान से सुन रहा था।पर व्यस्त होने का दिखावा कर रहा था।
तभी घर की डोर बेल बज उठी।मैडम दो दिन से भूखें हैं।दोनो बच्चे एक साथ बोलें।उनके कपड़े भी उनके चेहरों की तरह तार-तार थे।ठहरों, बच्चों मैं अभी आई।उसने बच्चों को खाना खिलाया।बच्चों ने खुश होकर पुरानें कपड़ों की माँग रख दी।वह अपनी बेटी की ओर देख रही थी।मन ही मन कह रही थी क्या मुसीबत है,खाना भी ख़िलाओ और कपड़े भी दो?
श्याम,पत्नी के चेहरे पर उठ रहे,भावों को लगातार देख रहा था।वह कुर्सी से उठा।उसने बच्चों को दस-दस रुपए दिएऔर उन्हें अगली बार आने के लिए कहा।बेटी,मम्मी-पापा के चेहरे देख रही थी।दोनों ने उनके जाते ही ठण्डी आह भरी और जोर से गेट बंद कर दिया।जैसे कह रही हो,अब मत आना।
राकेश कुमार तगाला

राकेश कुमार तगाला

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