कविता
बिन मिले ही बिछुड़े,
पलकें रह गयी प्यासी ,
चित्र बने अवशेष ,
फिर ढूँढे ख़ुशियाँ ,
नये-नये चित्र ,
सब मिले विचित्र ,
एक- एक कर सबका,
यूँ ही मिलना-बिछुड़ना ,
तलाश में अपनत्व की ,
क्या-क्या न किया ,
फिर भी सब यारों ,
बिन मिले ही बिछुड़े,
न मिलना शुमार था ,
न थी रस्में विदाई ,
पतझड़ सी हरियाली ,
चुभते सपने सुनहरे,
ब्लॉक-अनब्लॉक के खेल ,
दूरी बनी प्रीत ,
दूरियों की ही रीत ,
मिले भी तो अनजाने से ,
नये-नये अवशेष ,
बन रहे जीवाश्म ,
मोबाइल में बसी है ,
चाहत की तस्वीरें ,
पास थी तब भी ,
दिल था खाली-खाली ,
नहीं है तब भी ,
एहसास खाली-खाली
बिन मिले ही बिछुड़े,
पलकें रह गयी प्यासी ,
चित्र बने अवशेष ।।
विनोद कुमार जैन वाग्वर सागवाड़ा.