कवितापद्य साहित्य

अंतिम गुरु

सर्वप्रथम शिक्षक हम सबके, माता और पिता बने,
बाल्यकाल में उन्हीं से, हमें शिक्षा के उपहार मिले,

द्वितीय शिक्षक फ़िर हमारे, आदरणीय गुरुदेव बने,
जिनकी शिक्षा के बलबूते, हम ज्ञान की सीढ़ियां चढ़े,

किंतु शिक्षा प्राप्त करना, कभी भी पूर्ण कहां होता है,
फ़िर ठोकरें खाकर, हम स्वयं ही स्वयं के शिक्षक बने,

ग़लतियों ने हमारी, सदैव शिक्षक का ही काम किया,
वैसी ग़लतियाँ ना दोहरायें, ऐसा हमेशा हमें ज्ञान दिया,

जब वृद्ध गलती करते हैं, तब मन में यह प्रश्न उठते हैं,
आजीवन शिक्षा ग्रहण की, फ़िर अधूरे से क्यों लगते हैं,

कितने भी शिक्षित हो जाएं, शिक्षा कभी पूर्ण नहीं होती,
ग़लतियाँ कितनी भी सुधारें, लेकिन पूर्णाहुति नहीं होती,

हमारे जीवन के अनुभव ही, हमारे अंतिम गुरु होते हैं,
जो संपूर्ण जीवन, हम सभी को शिक्षित करते रहते हैं,

तो अपनी गलतियों और अनुभवों से भी ज्ञान प्राप्त करो,
आने वाले हर सवेरे के साथ, अपने जीवन में सुधार करो।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

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रत्ना पांडे

रत्ना पांडे बड़ौदा गुजरात की रहने वाली हैं । इनकी रचनाओं में समाज का हर रूप देखने को मिलता है। समाज में हो रही घटनाओं का यह जीता जागता चित्रण करती हैं। "दर्पण -एक उड़ान कविता की" इनका पहला स्वरचित एकल काव्य संग्रह है। इसके अतिरिक्त बहुत से सांझा काव्य संग्रह जैसे "नवांकुर", "ख़्वाब के शज़र" , "नारी एक सोच" तथा "मंजुल" में भी इनका नाम जुड़ा है। देश के विभिन्न कोनों से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र और पत्रिकाओं में इनकी रचनाएं नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। ईमेल आई डी: [email protected] फोन नंबर : 9227560264