एक अधूरी कविता
मेरी अधूरी कविता
मेरी ही तरह सम्पूर्णता को तलाशती है
मैं सम्बन्धों में पूर्णता खोजती हूं
वो शब्दों से पूरी होना चाहती है
मैं गुणों से अधूरी हूँ
उसमें भावनाओं की कुछ कमी सी है।।
मैं अनंत में खोना चाहती हूं
वो कागज पर बिखरना चाहती है
मैं भीड़ में अकेली हूं
वो मेरे बिना सूनी है।।
मेरे ख्वाब अधूरे हैं
वो छंद बिना आधी है
मैं वजूद की तलाश में हूं
वो अर्थों में भटकती फिरती है।।
मेरी पूर्णता से
वो पूरी हो जाएगी
उस दिन मेरी अधूरी कविता पूरी हो जाएगी।।
✒️प्रो. वंदना जोशी