कैसे जीवित रखे
हर आंगन में ख़ुशियों का अंबार नहीं होता,
नित्य होते इम्तेहानों का कभी पार नहीं होता,
कोशिशों में लगा ही रहता है खेवनहार सदा,
आजीवन वहां कभी कोई त्यौहार नहीं होता।
हफ्तों तक भूखे रहते सैकड़ों ही परिवार यहां,
जहां दो वक्त की रोटी का भी जुगाड़ नहीं होता,
आधा भोजन थाली में छोड़ देते कई लोग यहां,
प्रभु के घर भी बराबरी का हिसाब नहीं होता।
ममता का बहता है झरना मां के आंचल में,
भूखी मां के स्तन में दूध का संचार नहीं होता,
कैसे जीवित रखे अपने लहू से बने शिशु को,
भाग्य में उस माँ के संतान का प्यार नहीं होता।
बहते अश्कों से धरा को सौंप देती शिशु अपना,
भाग्य कभी सौभाग्य बन उनका साथ नहीं देता,
ऐसे अनगिनत परिवार हैं हालातों से जूझते यहां,
जिन पर कभी भी ईश्वर का आशीर्वाद नहीं होता।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)