गीत/नवगीत

गरज उठा फिर ! सिंह आज

गरज उठा फिर ! सिंह आज
कायर स्यार छिपा है माद
गड़ी है आँँखें उल्लू की
सरहद पर लोमड़ नाद
मची भगदड़ अरिदल में
होंगे ढेर वहीं खंदल में
कफन मिला हिम-गरल में
शव मिले गलवान तरल में
क्यों !
गरज उठा फिर ! सिंह आज
हुई शहादत वीरों की
खौला खून जवानों का
निहत्थे बलिदानी वीरों ने
गर्दन तोड़,कमर तोड़ी
हिम जंग छिड़ी
गले मौत पड़ी
क्यों !
गरज उठा फिर ! सिंह आज
बर्फीली मौत के सौदे
आज पड़े हैं भारी
हिमालय की छाती को
करने लहूलुहान आए
धूल चटाई वीरों
क्यों !
गरज उठा फिर सिंह आज
अनहोनी थी कुछ होनी थी
चले कुचक्र आज
फिर ! हिम दामन में
पार हिमालय निशाचर बैठा
यहाँँ शिव गण थे मौजूद
जो निराकार यम था
हुआ मौत से फिर साकार
क्यों !
गरज उठा फिर ! सिंह आज
है भुज ओज चट्टानों सा
विश्वास हिमालय बोल रहा
दहाड़ उठी घाटी गलवान
सिंहासन चीनी डोल रहा
माता के वीर सपूतों ने
शपथ हिमालय खाई है
धूमिल हो गया वह नारा
हिंदू चीनी भाई-भाई है
क्यों !
गरज उठा फिर ! सिंह आज
आज हिमालय गर्वित है
भारत को भूधर अर्पित है
हिम के सिंह जो चर्चित है
सामर्थ्य इनको अर्जित है
खड़ा हिमालय सीना ताने
आर-पार की है वो ठाने
क्यों !
गरज उठा फिर ! सिंह आज

ज्ञानीचोर

शोधार्थी व कवि साहित्यकार मु.पो. रघुनाथगढ़, जिला सीकर,राजस्थान मो.9001321438 ईमेल- [email protected]