देश को तब मिली आजादी
आबाद होने को जब हुई बरबादी।
देश को तब मिली आजादी।।
दो सौ वर्षों तक , देश रहा गुलाम।
छिनी शांति लोगों की , जीना हुआ हराम।
सन संतावन ने जब आग लगा दी ,
देश को….
माथे से पसीना टपका, खून गिरा सीने से।
मौत तो बेहतर है , घुट-घुट के जीने से।।
यह बात जब सबने फैला दी ,
देश को….
कश्मीर से कन्याकुमारी , बंगाल से राजस्थान।
जंग छिड़ा देश भर , संकट में पड़ा सम्मान।।
बहनों ने जब अपनी मांग मिटा दी ,
देश को….
सोने की चिड़िया को बचाने , गांधी-तिलक मिट गये।
विजयपथ के माला खातिर , कई जीवन धागे टूट गये।।
इंकलाब का स्वर जब हुआ उन्मादी ,
देश को….
@ टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”