मोबाइल पर देखी है तितली
हम सब ये बातें करते हैं कि आने वाली पीढ़ी चिड़िया – कौओं को भी नही पहचानेगी, सिर्फ चित्र में देखेंगे । पर जब यह घटित रूप में मैंने अनुभव किया तो बड़ा आश्चर्य हुआ, हम क्या दे रहें हैं अपने नौनिहालों को?
मेरे पास मेरी ही सोसायटी के कुछ बच्चे पेंटिंग सीखने आते हैं । उनमें से एक सबसे छोटा बच्चा है श्रेष्ठ, जिसकी उम्र लगभग पाँच साल होगी । जब मैंने उसे तितली बनाना सिखाया, और उसके पंखों में अपना मनपसंद रंग भरने को कहा तो उसने बड़ी मासूमियत से मुझसे पूछा ” आपने तितली देखी है? ” मैंने उसके सवाल का उसी अंदाज में जवाब दिया ” हाँ, देखी है, उसके पंख बहुत सुंदर होते हैं रंग बिरंगे, है न! ”
श्रेष्ठ ने तुरंत कहा ” पर मैंने तो नही देखी तितली ”
मैंने आश्चर्य प्रकट करते हुए पूछा ” तुमने कभी तितली नही देखी? ”
नही ! कहाँ पर दिखती है तितली? उसका अगला प्रश्न था, जो मुझे सोचने पर विवश कर रहा था कि क्या यह सच है? मैंने उसे समझाया, बेटा तितलियाँ फूलों पर आकर बैठती हैं । जहाँ फूल होंगे वहीं तितली दिखेगी । मैंने उसकी जिज्ञासा शांत करने के बाद फिर पूछा ” तुम्हारे घर पर फूल हैं?”
नही मेरे घर पर नही है पर नीचे है न मंदिर के पास ”
मैंने उसके मन में प्रेरणा जगाने की गरज से बाल सुलभ अंदाज में कहा तभी … तुम्हारे घर तितली नही आती ।
उसने फिर कुछ याद करते हुए कहा ” एक बार न, मम्मी ने मोबाइल में तितली की फोटो दिखाई थी । ”
मुस्कुराकर मैंने उसे बताया कि तितली कैसी होती है ।
मेरे बताए अनुसार वह बड़ी तन्मयता से तितली में रंग भर रहा था ।
लेकिन मैं स्वयं से प्रश्न कर रही थी, क्या वह दिन आ गए जब तितलियाँ भी विलुप्त हो रही हैं ? क्या हमारे नन्हे बच्चे तितलियां भी मोबाइल पर देख रहे हैं? क्या हम इन तितलियों को बुलाना भूल रहे है ? यही प्रगति है?
जरा सोचें ….।
— गायत्री बाजपेई शुक्ला