अंदर की नहीं जानते
चेहरे को पढ़ लेते हैं, अंदर की नहीं जानते
दरिया से वाकिफ हैं, समंदर की नहीं जानते
करते हैं इबादत मगर, दुखाते हैं दिलों को
ये ही काफिर हैं जो, कलंदर की नहीं जानते
ला- मकां है ये, खुदा कहे कोई या भगवान
फिरकापरस्त मस्जिद ओ मंदर की नहीं जानते
दौलतो- शोहरत का ग़ुरूर है लहज़े में जिनके
नादान हैं शायद, सिकंदर की नहीं जानते