दम तोड़ती कविता और कवि मनु
कवि मनु के दो कण आये,
आज संशय की झोली में ।
दम तोड़ती कविता भरते,
रिक्त ज्ञान की डोली में ।
अतल तरंगित लहरों सा मन,
कविता हिचकोले खा जाती ।
शब्दों के घन घुमड़ आते,
तड़ित भावों में कौधें जाती ।
नग्न फटेहाल,हो अश्रुपात,
जन व्यथा का करुण भार।
कवि मनु हो तार-तार,
कर जाते कविता आर पार ।
जन व्यथा की प्रतिध्वनि,
टकराकर क्षितिज से फिर आती ।
घायल करके कवि मनु को,
फिर ! अवरूद्ध कलम हो जाती ।
शब्दों का भंडार पड़ा है,
आज संशय के घेरे में ।
दम तोड़ते कविता लगती,
मनु ! चापलूसों के फेरे में ।
आज अज्ञान के दो कण,
फिर ! कवि मनु से टकराये।
हो चूर-चूर,क्षितिज ओर,
दम तोड़ती कविता घबराये।
आज कवि मनु के दो कण फिर !
विश्वास कविता में ले आये।
दम तोड़ती कविता में फिर !
आज कवि मनु को ले आये।