आखिर कब तक?
झूठे प्रेम प्रसंग में तुम,
डटे रहे हो क्यों?
राम-सी छवि तुम,
खोकर बैठे हो क्यों?
झेलकर शत्रुओं के तुम,
वार अभी तक चुप बैठे हो क्यों?
विषहीन नाग बनकर,
सपेरों की बीन पर नाच रहे हो क्यों?
यूं ही मौन रहकर तुम,
लोगों के सम्मुख मुखदर्शक बन बैठे हो क्यों?
–दिनेश प्रजापत