बाल कविता – बादल
कभी जो थे मासूम से सूने-सूने बादल |
अब दिखा रहे तरह-तरह के रंग बादल ||
झमा-झम-झम झड़ी लगा रहे |
तड़ा-तड़-तड़ बिजली चमका रहे ||
कभी छोटीं तो कभी बड़ीं-बड़ीं बूंदें |
सुन गड़-गड़ की ध्वनि बच्चे आँखें मूंदें ||
जब जोर-शोर से बरसे पानी |
छतरी खोल बाहर निकले नानी ||
सर-सर-सररर हवा चले पुरवाई |
टीनू-मीनू ने कागज की नाव चलाई ||
बागों में नन्हीं-नन्हीं कलियां मुस्काई |
मेढ़क दादा ने टर्र-टर्र की टेर लगाई ||
कीट-पतंगों के जीवन में बहार आयी |
खेतों में चहुंदिशि हरियाली छायी ||
कीचड़ की लपटा-लपटी से बेहाल |
मामाजी की बदल गई है देखो चाल ||
वर्षा रानी आती हैं, थोड़ी-बहुत समस्या लाती हैं |
पर धरती के जीवन में नव प्राण भर जाती हैं ||
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा