लघुकथा

एक और कहानी

पूरा नाम रतन बाबू, निक नेम रॉकी। बड़ा ही रॉक एण्ड रोल है। उसके लिए जीवन में फन, जीवन का आधार है और फन का आधार है, लड़कियां। स्कूल में भी उसके चर्चे कम नहीं थे मगर कॉलेज में तो सिर्फ इन्हीं के चर्चे हैं। इनको अपनी नई गर्लफ्रेंड से पुरानी गर्लफ्रेंड के किस्से सुनाने में बड़ा मजा आता है। कुछ उनकी बेवफाई के किस्से ,कुछ अपनी मर्दानगी के किस्से । निष्कर्ष यह निकलता है कि लड़की ठीक नहीं थी इसलिए उसे छोड़ दिया। रॉकी की शादी के दो महीने होने को है ।पत्नी ससुराल से विदा होकर पहली बार पहली संवत का रस्म पूरा करने मायके जा रही है। वह बहुत खुश है मगर रॉकी की इच्छा नहीं है कि उसकी नई नवेली पत्नी इतनी जल्दी उसे छोड़कर मायके जाए ।भले ही वह कुछ दिनों के लिए ही जा रही हो। अभी पहला हफ्ता ही बीता है कि रॉकी का पत्नी की यादों में बुरा हाल है। हर वक्त फोन से चिपका रहता है और फोन पर भी एक ही सवाल, तुम कब आओगी ? तुम्हारे बिना मन नहीं लगता। जल्दी आ जाओ। कि तभी एक डाकिया लिफाफा दे जाता है । लिफाफे पर उसकी पत्नी का नाम है। रॉकी के खुशी का ठिकाना नहीं है कि इस 5जी के जमाने में चिट्ठी वाली मोहब्बत ।रॉकी बेचैनी में लिफाफा खोलता है । उसमें एक पत्र है ,रॉकी के नाम, जिसमें लिखा है, “तुम्हें एक और कहानी दे रही हूं ,अगली पत्नी को सुनाने के लिए “साथ में एक डिवोर्स पेपर भी है जिस पर उसकी पत्नी के हस्ताक्षर है।

— डॉ मीरा सिन्हा

डॉ. मीरा सिन्हा

नालंदा, बिहार