जग प्रतिपल मूढ़ बना जाता
जग प्रतिपल मूढ बना जाता।
मैं हर पल कर्म समा जाता।
सत पथ प्रण निभा जाता।
फिर ! मैं उस छोर चला जाता।
जग प्रतिपल मूढ बना जाता।
यह संसार न मुझको भाता।
है नहीं जग से भी कोई नाता।
प्रतिपल जग मुझको ठुकराता।
कपटी संसार न मुझको भाता ।
जग प्रतिपल मूढ बना जाता।
नहीं विश्वासी जग में भ्राता।
मैं सब कुछ कर चला जाता ।
हैं प्राण दुविधा में ही पाता।
संकट फिर-फिर घिर आता।
जग प्रतिपल मूढ बना जाता ।
भव मनचाही करता जाता।
मैं सर्व अर्पण करता जाता ।
उम्मीदों का साथ लिए जाता
मैं नित्य कर्म किए जाता
जग प्रतिपल मूढ बना जाता।
जीवन में मृत्यु घोले जाता।
हर क्षण कर्म में तौले जाता।
भव मेरा परदा खोले जाता ।
निज हिय को ही छोले जाता ।
जग प्रतिपल मूढ बना जाता।