लौट आया
जिंदगी के खेल से तकरार लेकर लौट आया।
जीतने की चाह थी पर, हार लेकर लौट आया।।
था मुझे बस छोड़ कर सबसे मिला वो, मुस्कुराया।
मन मधुप! जिस पर रमा था, था उसी ने मन दुखाया।
गैर से भी निम्नतर व्यवहार लेकर लौट आया-
जीतने की चाह थी पर, हार लेकर लौट आया।।
जगमगाती चाँदनी के, होश भी कुछ उड़ गए थे।
और मेरी ओर नजरें, जब पड़ीं पग मुड़ गए थे।
अश्रुपूरित ही छणिक आभार देकर लौट आया-
जीतने की चाह थी पर, हार लेकर लौट आया।।
अनवरत हाँ आज तक इस, नेह से तो रिक्त ही था।
आपसे किंचित मिलन तक, आसरा भी धिक्त ही था।
प्यार पाने मैं गया धुत्कार लेकर लौट आया-
जीतने की चाह थी पर, हार लेकर लौट आया।।
शाम है दीपक नही है, रात भी है झनझनाती।
और प्रातः की किरण ऐसी लगे ज्यों काट खाती।।
मैं विखंडित इस तरह त्योहार लेकर लौट आया-
जीतने की चाह थी पर, हार लेकर लौट आया।।
मैं प्रणय में पीर का उपहार लेकर लौट आया।
था मिथक सत्कार का आकार लेकर लौट आया।।
उर विरह में अश्रु का अम्बार लेकर लौट आया-
जीतने की चाह थी पर, हार लेकर लौट आया।।