गीत/नवगीत

आंखें मिलाकर कहो

मुझको ये भरोसा दिलाकर कहो
चाहे कोई कसम एक खाकर कहो
पहली उंगली उठी थी तेरी ओर से
मैं गलत हूं ये आंखें मिलाकर कहो

मैं तो हाथों तुम्हारे गया था छला
जोर मुझपे ही मेरा नहीं था चला
था वही बस किया जैसे हालात थे
फिर कैसे गलत हो गया मैं भला
खुद को मेरी जगह पर लाकर कहो
मैं गलत हूं ये आंखें मिलाकर कहो

बात अपनी जहां को बताते रहो
दृश्य झूठे सभी को दिखाते रहो
था मैं न गलत और हूं भी नहीं
उंगलियां चाहे जितनी उठाते रहो
द्वेष की जद में कुछ भी न आकर कहो
मैं गलत हूं ये आंखें मिलाकर कहो

विक्रम कुमार

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