वह पल फिर लौट के आयेगा
वह पल फिर लौट के आएगा ,
नेह की गङ्गा धरा पर लाएगा ,
हर आँगन बगिया बन महकेगा,
स्वर्ग सुख धरा पर छलकेगा ,
फिर खिले-खिले होंगे दर ,
मन्दिर मस्जिद से होंगे घर ,
हर दिल तीरथ बन जाएगा ,
मनुज मनुजता के गुण गाएगा ,
हर रिश्ता मनभावन होगा ,
हर चेहरे में सावन होगा ,,.
नफरत की न होगी रंगोली ,
न खेलेंगे खून की होली ,
भाईचारे के दीप जलेंगे ,
तन चंदन सा महकेंगे ,
बस्ती बस्ती बहे प्रेम सरिता,
नर नारी से दमकेंगे ,
फिर न जलेंगी बहु-बेटियाँ ,
धरा सावन सी चहकेगी ,
सदियों के बाद अमृत बरसा ,
वह पल फिर लौट के आएगा ।।
विनोद कुमार जैन वाग्वर सागवाड़ा