ग़ज़ल
नदिया जब भी उफान पर आई
खेत की मिट्टी कटान पर आई
खड़ी फ़सल की देख भाल करने को
रात की रोटी मचान पर आई
फूल की तरह खिल गए चेहरे
फ़सल जब खलियाँन पर आई
हमने पूरी की है अपने बचचौ की
जो भी ख्वाइश जुबान पर आई
लोग उसका मोल भाव करने लगे
अस्मत जब भी दुकान पर आई
मरते दम सिकंदर भी हो गया बौना
जब उसकी मिट्टी कब्रिस्तान पर आई
हमने सर भी कटा दिए पारस
बात जब आन बान पर आई
Dr रमेश कटारिया पारस