अंधेरे में इंसान
स्वच्छ मन में, स्वार्थ और ईर्ष्या से.
आधुनिक इंसान में, पनप रहा है अंधेरा.
पनपे रहे अंधेरे से, दरारे आ गई संबधों में.
प्रेम की परिभाषा अब, हो गई है कोसो दूर..
दूरिया बढ़ने से, बदल रहा है सुन्दर सा तन.
चेहरे की मुस्कुराहट को, छीन गया अंधेरा..
स्वच्छ मन में, स्वार्थ और ईर्ष्या से.
आधुनिक इंसान में, पनप रहा है अंधेरा.
चंद पैसो की लालच में, हो रहा है बालश्रम.
अनमोल बचपन को, छीन रहा है बालश्रम..
अज्ञान के आवरण में, फैल गया है अंधेरा.
मुस्कुराते बचपन को, छीन रहा है अंधेरा..
स्वच्छ मन में, स्वार्थ और ईर्ष्या से.
आधुनिक इंसान में, पनप रहा है अंधेरा.
शिक्षित लोग, कन्या के महत्व को समझ नहीं पाए.
लड़के की चाहत में, कर रहे है कन्या भ्रूण हत्या..
शिक्षित होते हुए भी, छाया फैली है अंधेरा की.
धन्य है अनपढ़ लोग, नहीं कर रहे हैं भ्रुण हत्या..
स्वच्छ मन में, स्वार्थ और ईर्ष्या से.
आधुनिक इंसान में, पनप रहा है अंधेरा.
आधुनिकीकरण के चक्कर में, कट रहे है पेड़.
अपने अस्तित्व को बचाने में, तरस रहे हैं पेड़..
अंधेरे के आवरण में, डूब गया है आधुनिक इंसान.
पर्यावरण संरक्षण को, नहीं समझ रहा है इंसान..
— कुमार जितेन्द्र “जीत”