गीतिका/ग़ज़ल

बेटियाँ

*बेटियाँ*

कुल का दीपक उन्हें तुम समझते रहे,

उस दीपक की ज्योति बनी बेटियाँ हैं।

घर के सूने आगन को कर देतीं भरा

पायल की वह झनकार, बनी बेटियाँ हैंं।

रिश्ते के बंधन का निभाती हैं फर्ज

राखी की तो डोर बनी बेटियाँ हैं।

देखो कर देती हैं सारा सपना साकार,

हौसलों के उड़ान, जब उड़ी बेटियाँ हैं।

ज़िंदगी है उनकी दोहरे पैमाने पर

दो कुल का अभिमान बनी बेटियाँ हैं।

आता है संकट कभी जब इस देश पर

चंडी का रूप लेकर, लड़ी बेटियाँ हैं।

इस धरा की देखो उतर आई परी

दुल्हन की तरह जब सजीं बेटियाँ हैं।

यह रवि आज तुमको क्या बतलाएगा?

सारे संसार की तो खुशी बेटियाँ हैं।
रवि श्रीवास्तव
रायबरेली, उत्तर प्रदेश

रवि श्रीवास्तव

रायबरेली, उत्तर प्रदेश 9718895616