मासूम शिकायत
सुबह के काम निपटाकर नाश्ता लेकर बैठी थी, एक हाथ में चाय का कप और दूसरे में टीवी. का रिमोट था, टीवी ऑन करने ही जा रही थी कि तभी किसी की आवाज सुनाई दी, डोरबेल की आवाज नही थी, फिर भी लगा शायद सूरज वापस आ गया हो, डाइनिंग टेबल से मेन गेट की तरफ उठी ही थी, कि फिर आवाज आई- अरे आप कही जाओ नही, बाहर कोई नही आया, हम यही हैं, बहुत दिन से हम लोगो को आपसे बात करने थी, मै इधर उधर देखने लगी कि आवाज आ कहाँ से रही है, घर में तो मेरे सिवा कोई है ही नही, बिट्टू स्कूल में है, अमित ऑफिस में, बाऊ जी शुक्ला जी के यहाँ गए हुये हैं और सूरज को पंसारी की दुकान भेजा हुआ है। तभी मेरी नजर चाय पर रखे कप पर पडी- ऐसा लगा जैसे वो कप नहीं कोई छोटा सा लडका है, वो फिर बोला- प्लीज आप यहीं बैठिये, और मेरी बात सुन लीजिये। मै बैठ गयी, मैने कहा , हाँ हांं बताओ न क्या कहना है? उस कपनुमा बच्चे ने कहा- आप कुछ दिन पहले जो नई क्राकरी वाली अलमारी लाई है ना, मुझे वहाँ जाना है, आप रोज मुझे उसी पुरानी अलमारी में बिठा देती हो, जबकि मै कबसे आपके साथ हूँ, और सर जी कल ही जिन नये कप प्लेटों को लाये आपने उनको वो नई वाली अलमारी दे दी। तभी टेबल पर रखे नमकीन के डिब्बे से आवाज आई- आप हमको हमेशा ही बस नमकीन खिला देती हो, कितने सालों से मैने कुछ और खाया ही नही, और कल जब सर जी सुन्दर वाले विलायती डिब्बों को लाये तो आपने तुरन्त उनको महंगे वाले ड्राईफ्रूट्स दे दिये। हम लोगों के साथ ऐसा पक्षपात आप क्यों करती हैं। मेहमानों के सामने भी आप हम लोगों को नहीं जाने देती। हमलोग सुन्दर नही हैं ना, इसीलिये आप ऐसा करती हैं, किसी भी त्योहार में भी आप हम लोगों को पुरानी वाली अलमारी में अन्दर बन्द कर देतीं हैं। क्या हम आपको बिल्कुल भी पसन्द नहीं हैं। तभी उस कप में मुझे सूरज की छवि नजर आने लगी। दो साल पहले मेरी कामवाली की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गयी थी, उसके एक यही बच्चा था, पति पहले ही कैंसर से मर चुका था, तो हम और अमित उसको घर ले आए थे, आज करीब दस ग्यारह साल का था, घर के छोटे मोटे काम में मेरी मदद कर देता है। मुझे लगा जैसे परोक्ष रूप से सूरज मुझसे कह रहा हो कि आप हमेशा ही मुझे बिट्टू भइया के पुराने कपडे देती हैं, प्लीज इस दीवाली मुझे भी नये वाले कपडे दे दीजिये न। मै तो आपके बहुत सारे काम करता हूँ ना। प्लीज बताइये, आप दे देंगी ना।