धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

मौत का भय

बहुत समय पहले एक कहानी पढ़ी थी—–महात्मा बुद्ध के पास एक महिला अपने लड़के को लेकर आई और बोली, महात्मा यह मेरे नियन्त्रण ये बाहर हो गया है, मेरी एक नहीं सुनता। इसके पिता तो है नहीं, कृप्या आप ही इसका कोई ईलाज करें। बुद्ध बोले—देवी इसका ईलाज करने का कोई फायदा नहीं क्योंकि इसका षेश जीवन मात्र सात दिन है। वह महिला दुखी व स्तब्ध अपने लड़के को लेकर बापिस आ गई। चार दिन बाद बुद्ध उस महिला के घर गये और पूछा क्या अब भी यह आपको पहले की तरह ही सताता है कि कुछ सुधार है। महिला तुरन्त बोली, महाराज आप सताने की बात कर रहें है, जिस दिन से इसे पता लगा है कि अब इसका अन्त नजदीक है, इसका व्यवहार बिल्कुल बदल गया है । आज हम सब भी मौत के डर से भयभीत है, परन्तु देखने वाली बात यह है कि क्या हमारा भी व्यवहार पहले से अच्छा हुआ है । हां एक बात अवष्य हुई है कि पहले से खर्च कम करे हैं और बचत अधिक कर है।

इसी संन्धर्व में एक और कहानी पढी। –एक युवक मछुआरा समुद्र में मछलियां पकड़ता और उन्हें बेचकर अपनी जीविका चलाता था। एक दिन एक व्यक्ति मिला वह उसे मच्छलियां पकड़ते देखता रहा । जब वह काम से निवृत हुआ तो वह व्यक्ति उसके पास आया और पूछा—मित्र क्या तुम्हारे पिता भी यही काम करते हैं हैं ़.? उसने जबाव दिया करते थे पर अब वह जीवित नहीं। उन्हें समुद्र की एक बड़ी मच्छली निगल गई। उस व्यक्ति ने फिर पूछा -और तुम्हारा बड़ा भाई ? मछुआरे ने जवाब दिया , नौका डूब जाने के कारण वह भी समुद्र में समा गया। उस व्यक्ति ने जिज्ञासा वष फिर पूछा–दादा और चाचा की मृत्यु कैसे हुई। मछुआरे ने जवाब दिया , मित्र वह भी समुद्र में ही लीन हो गये। वह व्यक्ति बोला—बड़ी हैरानगी की बात है कि यह समुद्र तुम्हारे परिवार के विनाष का कारण है, तुम इसे जानते हुये भी इसी समुद्र में मछलियां पकड़ते हो। क्या तुम्हें मरने का डर नहीं ? मछुआरा उस की बात सुन कर उस व्यक्ति से बोला—अब आप बतायें कि तुम्हारे दादा और पिता कहां है? वे अब इस दुनिया में नही। उस व्यक्ति जे जवाब दिया। मछुआरा बोला–देखो मित्र वे तो इस समुद्र में नहीं आये फिर भी मौत उनको ले गई। मौत कब आती है, कैसे आती है, यह आज तक कोई समझ नहीं पाया। फिर मैं मौत से बेकार में क्यों डरू।

जहां तक मैं समझ पाया हूं, महात्मा बुद्ध के कथा कें पात्र वे लोग हैं जिन्हें ईष्वर ने सब कुछ दिया होता है। दूसरी अथार्त मछुआरे की श्रेणी में वे आते हैं जो सुवह कमाते हैं व षाम को खाते हेैं ,उनहें इस कोरोना में भी कोई भय नहीं, काम में लगे हुयें है। इस कोरोना संक्रमण में खुल कर सामने आया है। जिस व्यक्ति के पास जितना अधिक धन है उतना अधिक ही उसका डर है। हमारी प्रवृति भौतिक बस्तुओं का संग्रह कर उस के साथ चिपके रहने की है। केवल मृत्यु ही इस संग्रह को हम से अलग करने में सक्ष्म है। इसलिये स्वभाविक तौर पर हम मृत्ये से बहुत डरते है।

आसमयिक मृत्यु को छ़ोड़ दिजीये, मृत्यु तो मनुश्य पर उस समय बहुत बड़ा उपकार करती है जब कि उसका षरीर षिथिल हो चुका होता है, वह विभिन्न रोगों से पीड़ित होता है और हर चीज के लिये दूसरों पर आश्रित हो गया होता है। क्या हम स्वयं नहीं कहते, उसे ईष्वर ने मुक्ति दी है। जरा सोचिये , यदि मृत्यु न होती तो यह संसार कैसा होता। इसलिये ठीक कहा है हमारे ज्ञान की कमी ही हमें मृत्यु से भयभीत करती है।

— भारतेन्दु सूद

भारतेंदु सूद

आर्यसमाज की विधारधारा से प्रेरित हैं। लिखने-पढ़ने का शौक है। सम्पादक, वैदिक थाट्स, चण्डीगढ़