आम का दुःख दर्द
दो आम अचानक आपस में मिल गए। एक फलों का राजा और दूसरा आम आदमी। बातों-बातों में दोनों अपने सुख -दुःख एक दूसरे से साझा करने लग गए।
आम (फलों का राजा)- क्या हाल चाल है आपके?
आम (आदमी) – अपना क्या है बस कट रही है। सुना है आजकल आपकी खूब डिमांड है।
आम (फलों का राजा)- हाँ भाई! वैसे तो हमारा मौसम चार महीनों के लिए आता है। पर हमारी डिमांड सालभर बनी रहती है।
आम (आदमी) – सही कहा जनाब आपने। वैसे तो हमारी भी डिमांड रहती है। पर हमारा मौसम पांच साल मैं एक बार आता है। किस्मत से इस बार हम फिर डिमांड में है। सुना है उपचुनाव होने वाले हैं।
आम (फलों का राजा)- बधाई हो भैया। सच कहूँ तो कहने में बड़ा दुःख होता है, पर आप जिस तरह से हमें चूसकर खाते हो, उससे ज्यादा तो आप चूसे जाते हो।
आम (फलों का राजा)- कुछ सोचकर। जनाब तरस आता है आपकी किस्मत पर आप तो सिर्फ हमें चूसते हो। पर न जाने आपको कौन-कौन और किस -किस तरह से चूसता है। खैर छोड़ो। जख्मों को जितना कुरेदो उतना ही दर्द देते हैं। आपको बुरा लगा हो तो हम माफी चाहते हैं। पर क्या करें आपका दुःख हमसे देखा भी तो नहीं जाता।
आम (आदमी)- अरे नहीं भाई। अब आपका क्या बुरा मानना। आप भी अब कह ही दो।
आम (फलों का राजा)- देखो भैया ! कहलाते तो हम दोनों ही आम हैं, पर फर्क इतना है कि लोग हममें क्वॉलिटी देखते हैं और आपमें वैरायटी।
आम (आदमी) – इसी बात का तो रोना है। आपकी कीमत चुकाई जाती है और हमारी कीमत लगाई जाती है।
आम (फलों का राजा)- आपकी दुनिया भी अजीब है भाई। हम आम होकर भी खास हैं और आप खास होकर भी आम हो।
चलो फिर मिलते हैं। अपने-अपने मौसम में।
✒️ प्रो. वन्दना जोशी