घर का स्तंभ
दहलीज पर पैर रखते ही चाचाजी ऊँची आवाज़ में माँ पर बरस पड़े ।
भाभी….. …आप नहीं जानती मौहल्ले वाले रजनी को लेकर क्या क्या बातें बना रहे हैं ? सीढ़ियों से नीचे उतर कर रजनी को मास्क पहनकर जाते हुए देखकर उबल पड़े ।
रजनी ठहरो ! कहाँ जा रही हो ?..सुना है …….चार घंटे बाद लौटकर आती हो आज इस बात का जवाब देना ही होगा ।
तुम्हारे पिता मरे अभी कुछ ही महीने हुए हैं ।…….और तुम हो कि ये सब ।
“चाचाजी मुझे कमाने के लिए घर से निकलना ही होगा ….वर्ना घर कैसे चलेगा ।”
आप तो जानते ही हैं ……पिता जी के मरते ही भाई की नीयत भी बदल गई माँ के भोलेपन का फायदा उठाकर सारा पैसा निकाल लिया और अपने बच्चों को लेकर चला गया पलटकर हम मां बेटी की तरफ देखा भी नहीं ।
चाचाजी मैं रेडीमेड गारमेंट्स की फेक्टरी में कपड़े सिलने जाती हूँ ।
” देवर जी बेटी पर गर्व है इसने ने मेरे घर के स्तंभ को ढहने से बचाया है ….. मैं तो पुत्र मोह में सब गवाँ बैठी थी ।
— अर्विना