नारी का स्थान अब भी हासिये पर क्यों?
मेरा हृदय वेदनाओं से भर जाता है! नयनों में विसाद के नीर बरबस छलकते हैं!जब किसी के आकस्मिक दुनिया से जाने की खबर पाती हूँ…! खुद को उस खबर से उबारने में मुझे हफ्तों का समय लग जाता है!कुछ खबरें तो सदैव ज़हन में रह जाती हैं! और रह-रहकर विचलित करती रहती हैं! आज भी कुछ ऐसा ही वाकया हुआ! मुझे ठीक से याद भी नही कि लगभग कितने वर्षों बाद मेरी उससे फोन पर बात हो रही थी..! सामान्य हाल चाल और समाचार से शुरू बातों का दौर…कभी हंसी मजाक तो कभी घर परिवार और गंभीर विषयों पर चर्चा होती रही!उसने फोन पर हुई चर्चा के दौरान मुझे एक पल के लिए भी यह एहसास नहीं होने दिया कि वो और उसकी स्थितियाँ अब पहले जैसी नही रहीं!वो अपने शहर का जाना पहचाना नाम हो चुका था!सर्व सुविधायुक्त घर, अच्छी गाड़ी एवं अच्छे खासे बैंक बैलेंस का मालिक था उसका नाम शहर के धनी लोगों में शुमार हो चुका था!मुझे भी खुशी हुई की चलो अच्छी बात है अपने मेहनत के बलबूते इस मुकाम तक पहुंचे!
फोन पर बात करते हुए मैं ने उसके मम्मी पापा अर्थात अंकल जी और आंटी जी जिनसे मैं बहुत पहले बहुत बार मिली थी उनका हाल चाल पूछ लिया! वह थोड़ी देर चुप रहा फिर बोला बाकी सब तो ठीक है लेकिन पापा अब भी माँ पर हाथ उठा देते हैं और कभी-कभी गुस्से की हद को पार करते हुए माँ की बेदम पिटाई कर देते हैं और माँ चुपचाप सिसकियों के साथ यह सब झेल जाती हैं! यह सुनकर मैं आवाक रह गई! मेरे जुबान को जैसे लकवा मार गया! मैं कुछ कह ही नहीं पा रही थी! यह बात मुझे अंदर ही अंदर झकझोर गई कि आखिर अब भी से क्या मतलब है? क्या अंकल जी तब भी आंटी कि पिटाई करते थे और आंटी जी ने कभी उनके खिलाफ जुबान तक नहीं खोली किसी को कानोकान खबर नही होने दी अंकल जी के गुस्से और उनके द्वारा की गई पिटाई को चुपचाप सहन करती रहीं और अब भी कर रही हैं?
सेवानिवृत्त अंकल जी ऐसा कैसे कर सकते हैं??कि उम्र के चौथे पड़ाव की दहलीज पर खुद खड़े होकर हम उम्र आंटी जी को पीटते हैं और आंटी जी चुपचाप सब झेलती हैं?? अंकल जी बाहर से कितने सहज,सरल,हंसमुख पढ़े,लिखे,सुलझे हुए व्यकितत्व लगते हैं लेकिन अंकल जी का यह रूप भी था और है यह जानकार मैं हतप्रभ थी!
वहीं दूसरी ओर आंटी जी सात्विक विचारधारा की हमेशा खुश दिखतीं छोटी-छोटी बातों पर खुलकर हंसती थीं और अंदर ही अंदर वो अंकल जी के इस जुर्म सितम को कैसे चुपचाप सहती आयीं और अब भी सह रही हैं!
मैं ने बड़ी हिम्मत करके उससे पूछा कि आखिर बार अंकल जी ने आंटी जी के साथ मारपीट कब की? और किन कारणों को लेकर? उसका जवाब था कि अरे कल ही पापा मम्मी को गुस्सा होकर बहुत पीटे हैं….!!
मैं ने कहा क्यों ? अंकल जी ने ऐसा किया? उसने बताया कि माँ पड़ोस वाली आंटी के साथ सत्संग सुनने चली गईं थीं घर लौटते समय में थोड़ी देर हो गई और फिर पापा ने उसी बात को लेकर बहस करना शुरू किया और बखेड़ा खड़ा कर दिया आखिर गुस्सा तब शांत हुआ पापा का जब वो माँ की पिटाई कर दिए! मैं खामोश रही और फोन रख दी!
क्या यह वही देश है जहाँ नारी को देवी की संज्ञा दी गई है ? संस्कृति में तो यह भी लिखा गया है कि…
“यत्र नार्यस्तु पूजयंते रमंते तत्र देवता” क्या सचमुच इन पंक्तियों में कोई सच्चाई है? क्या सचमुच हम पढ़े लिखे समाज में रह रहे हैं? आखिर क्यों पुरुष हर जगह हारना स्वीकार कर सकता है! किंतु एक स्त्री के समक्ष वह कदापि झुकना पसंद नहीं करता और स्त्री को सदैव अपने प्रभाव में रखने की कोशिश करता है?? आखिर कब तक पति को परमेश्वर मानकर एक स्त्री उसके जुल्म सितम को सहन करती रहेगी? बड़े-बड़े बंगलो में पढ़े लिखे समझदार लोग जब एक स्त्री मन को नहीं समझ पाते हैं एक स्त्री की कुर्बानी उसके त्याग बलिदान उसके प्रेम, उसके वात्सल्य को नही समझ पाते हैं तब तकलीफ होती है एक औरत को एक औरत होने में….!
वो घुटती अंदर ही अंदर और एक दिन उसी बेबसी मजबूरी और लाज का पर्दा ओढ़े वो स्त्री ओढ़ लेती है कफ़न और अलविदा कह देती है इस पुरुष प्रधान दुनिया को और दुनिया के ढोंग को!!
— मीना सामंत