लघुकथा

अनुसरण

भावना जी,आप अपनी सफलता का श्रेय किसे देना चाहती है?वह चुपचाप सभी के प्रश्नों को सुन रही थी।उस पर लगातार सवालों की बौछार हो रही थी।पत्रकारों की आवाज उसे कुछ कहने के लिए उकसा रही थी।वह मन ही मन खीज उठी थी।वह खुद से ही सवाल कर रही थी। क्या उसकी सफलता, सिर्फ उसकी ही मेहनत का परिणाम थी? आज वह सफलता के जिस मुकाम पर है।क्या जय का इसमें कोई हाथ नहीं है?
उसने पत्रकारों से इतना ही कहा, कोई भी सफलता किसी अकेले के प्रयासों की नहीं होती। इसमें सभी का सहयोग होता है।आपके अपनो का। इससे ज्यादा मै कुछ नहीं कहना चाहती। मुझें विश्वास है आप सभी सहयोग करेंगे।वह वहाँ से निकल जाना चाहती थी।कही कोई उसके अतीत को ना कुरेद दे?
अगले दिन के अखबारों में काफी कुछ छपा था।उसके साथ जय का नाम भी उछाला गया था।उसी जय का जो कभी उसके लिए सब कुछ था। कितना प्यार करती थी वह जय से?
रात-दिन उसी के नाम की माला जपती थी।ये प्यार नही तो और क्या था?
जय ठीक ही कहता था,बिना किसी का अनुसरण किए।हम जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते।
पर मै हमेशा ही अड़ी रहती थी।मैं उससे कभी सहमत नहीं हुई थी।वह कहा करता था,सफलता सिर्फ हमारे प्रयासों से ही नहीं मिलती।हम कही ना कही,किसी ना किसी का अनुसरण करते हैं।
जय की तस्वीर देख कर मेरी आँखें भर आईं।आज भी तस्वीर में उनका मुस्कुराता चेहरा मुझें यही स्वीकार करने के लिए कह रहा था।मान भी लो भावना।
हा-हा तुम सही थे,तुम्हारे आदर्शों को अपनाकर ही मैंने सफलता प्राप्त की है।काश तुम मेरे पास होते,तब समझते कि मेरी हर सफलता तुम्हारे ही अनुसरण का सुखद परिणाम है।
उसे लगा जैसे जय उसे उसकी सफलता पर बधाई दे रहे हों।

— राकेश कुमार तगाला

राकेश कुमार तगाला

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