ग़ज़ल
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कुछ वक्त मेरे साथ बिताने के लिए आ।
तू शमअ सरे बज़्म जलाने के लिए आ ।।
दिल पर किसी के राज चलाने के लिए आ ।
ऐ दोस्त नई मंजिलें पाने के लिए आ।।
यूँ छुप छुपा के देख रहा है तुझे ये कौन ।
शर्मो हया का पर्दा हटाने के लिए आ।।
अफ़सोस है कि आज परिंदे हैं गिरफ़्तार ।
सय्याद पे तू तीर चलाने के लिए आ ।।
माना कि तेरे साथ जमाने की दुआ है ।
दामन से मेरे दाग़ मिटाने के लिए आ ।।
टूटे न मुहब्बत का भरम तुझ से किसी का ।
इक बार ज़माने को दिखाने के लिए आ ।।
रूठा है कोई मुद्दतों के बाद भी अब तक ।
ऐ यार तू उल्फ़त को मनाने के लिए आ ।।
यूँ उम्र गुज़र जाए न रुसवाइयों के साथ ।
महबूब के दिल में तू समाने के लिए आ ।।
बाकी हैं मेरे हक़ के अभी और उजाले ।
ऐ चाँद यहाँ फ़र्ज़ निभाने के लिए आ ।।
— डॉ नवीन मणि त्रिपाठी