मन वृंदावन हो आता है
वर्ष के बारह मासों में सावन का मास जो आता है
मन झूम झूम सा जाता है और वृंदावन हो आता है,
वो वृंदावन जिसमें मेरे गिरधर ने रास रचाया था
जिसे देख देख डाली डाली पत्ता पत्ता हरसाया था
चाहे गैया हो या ग्वाल सब का ही गिरधर से नाता है
मन झूम झूम सा जाता है और वृंदावन हो आता है,
सारी गैया और ग्वाल सभी कान्हा के प्रेम दीवाने थे
सुध बुध खोते मुरली की धुन में जग से हुए बेगाने थे
गोपी और राधा संग कान्हा यौवन यहीं गुजारा है
मन झूम झूम सा जाता है और वृंदावन हो आता है,
जब जाऊं मैं वृंदावन तो कुंज गली हो आती हूं
धूल के हर एक कण में भी कान्हा की खुशबू पाती हूं
वो मुरली का राग मधुर मेरे कानों में घुल जाता है
मन झूम झूम सा जाता है और वृंदावन हो आता है।।
— अनामिका लेखिका