आधुनिक समाज में बिगड़ते बच्चे : कारण और निवारण
मैं पेशे से शिशु रोग विशेषज्ञ हूँ। मुझे प्राइवेट प्रैक्टिस करते 10 वर्ष गए हैं। जिन बच्चों को मैंने 2010-2011 में देखा था। वो बच्चें आज किशोरावस्था में प्रवेश कर रहे हैं। इसलिए मेरे समक्ष उनकी समस्याएं पहले शारीरिक सम्बंधित थी वो अब परिवर्तित होकर मानसिक समस्याओं में बदल रही हैं। इस आयु में बच्चे अधिक स्वतंत्र रहना पसंद करते हैं। दोस्तों से घुलना-मिलना अधिक पसंद करते हैं। उनमें उत्तेजना, उत्सुकता, जोखिम कार्य करने की इच्छा, प्रयोग करने की इच्छा अधिक बलवती हो जाती हैं। इन्हीं कारणों से मेरा ध्यान भी इस विषय की ओर गया कि उनकी इस समस्याओं का मूल कारण क्या हैं?
मानसिक चिकित्सकों के अनुसार 10 से 18 वर्ष की आयु में माता-पिता की अपने बच्चों से संवादहीनता बढ़ती जा रही हैं। इस वर्ग विशेष में कुछ समस्याएं देखने में आती हैं जैसे पढ़ाई में मन न लगना,परीक्षा में अंक कम आना, चिड़चिड़ापन, भूख न लगना, शरीर का अधिक विकास न होना, नींद कम आना, मोटापा अथवा पतलापन, चेहरे पर रौनक न होना आदि । ये लक्षण किशोर-किशोरी को अकेलापन, लव जिहाद, नशा, चरित्रहीनता, अवसाद, शारीरिक हानि, आत्महत्या आदि की दिशा में धकेल देते हैं।
सोशल मीडिया ने बच्चों में इन दूरियों को बहुत अधिक बढ़ा दिया है। माता पिता बाहरी दुनिया से व्हाट्सप्प, फेसबुक द्वारा बात करने में व्यस्त है मगर अपने बच्चों के लिए उनके पास समय नहीं हैं। ऐसे में वे बच्चों को धार्मिक संस्कार ही नहीं दे पाते। पहले संयुक्त परिवारों में दादा-दादी के संग यह संवाद अपने आप पैर दबाते हुए, तेल मालिश करते हुए, कहानी सुनाते हुए, बालों को संवारते हुए स्थापित हो जाता था। उनका अनुभवी निरिक्षण बच्चों को भटकने नहीं देता था।असंयुक्त परिवारों में पले हुए बच्चें इन समस्याओं से अधिक ग्रस्त पाए जाते हैं।
बच्चे भी ऐसे में अपने दोस्तों के अधिक से अधिक संपर्क में रहने लगते हैं। इस आयु में अच्छे बुरे की पहचान न होने से वो अक्सर गलत मार्ग को पकड़ लेते हैं। इसलिए अपने बच्चों से सकारात्मक संवाद सदा करते रहे। यही संवाद उनमें अकेलापन कभी आने नहीं देगा। क्यूंकि इन्हीं समस्याओं से ग्रस्त बच्चे युवा होने पर अच्छे गृहस्थी नहीं बन पाते। उनमें परस्पर तनाव, झगड़ा, अनमेलपन से लेकर तलाक आदि भी अधिक संख्या में देखे जाते हैं।
इसलिए यह समस्या दूरगामी प्रभाव डालने वाली है। इसके निराकरण के लिए कुछ उपाय इस प्रकार हैं-
1. घर में बच्चों और बड़ों के मध्य परस्पर संवाद हो।
2. बच्चों से बात करते समय अपने हाथ में मोबाइल फ़ोन या आपका ध्यान टीवी में नहीं होना चाहिए। मोबाइल पर बच्चों के सामने कभी किसी से नकारात्मक वार्तालाप न करे। इससे बच्चें भी आपका अनुसरण करना सीख जाते हैं।
3. हर हफ्ते आप बच्चों के साथ रविवार शाम को अथवा अन्य दिन पार्क आदि में अवश्य जाये।
4. जहाँ भी जाये बच्चों को साथ लेकर जाये। अकेले घर पर मत छोड़े।
5. बच्चों को मोबाइल फ़ोन का प्रयोग केवल उनकी शिक्षा सम्बंधित कार्यों के लिए दे। वीडियो गेम, कार्टून, पबजी आदि के लिए नहीं।
6. केवल पढाई की ही बात उनसे मत कीजिये। अन्य विषयों पर भी यथासम्भव सकारात्मक चर्चा अवश्य कीजिये।
7. रात्रि की उन्हें एक शिक्षाप्रद कहानी अवश्य सुनाये।
8. उन्हें छुट्टियों में समय काटने के लिए कहानियों की पुस्तकें, संगीत यन्त्र, घर में खेलने वाले गेम आदि दे। मोबाइल फ़ोन नहीं।
9. उनके साथ खेल आदि खेले। जैसे बैडमिंटन, योग, कसरत आदि।
10. संवाद करते हुए उनके मस्तिष्क में झाँकने का प्रयास करे और उनकी समस्याओं को मनोवैज्ञानिक रूप से समझने का प्रयास कर उन्हें सुलझाने में उनका साथ दे।
11. अगर समस्या अधिक हो तो मनोवैज्ञानिक चिकित्सक अथवा चाइल्ड कौंसलर का साथ ले।
12. उन्हें सदैव डांटें मत। न ही अपशब्द बोले।
13. परीक्षा में अंक कम आने पर उन्हें कोसिये मत। अगली बार के लिए प्रोत्साहित कीजिये।
याद रखिये आपकी संतान आपकी सबसे बड़ी पूंजी हैं। उन्हें सही मार्ग पर चलाना आपकी जिम्मेदारी हैं।
— डॉ विवेक आर्य