ना मिला
मुस्कराते चेहरे के पीछे
छीपा गेहरा दर्द मिला
जिसके इंतझार था हमे
सालो से वो ना मिला
किनारा तो पास हि था
डूबती कश्ती को, ना साथ मिला
अंधेरो मे ढूंढ रहे थे
वो उजाला कहीं नही मिला
प्रश्न तो थे दिल मे कहीं
जवाब उनका कहीं ना मिला
मौतकी ख्वाहिश कि
पर वो भी ना मिला
जिंदगी का हर एक पेहलूँ
यूँ ही सदा,दर्द सा चला
चाहत थी हमे बसंत की
पर हर मौसम बेदर्द मिला
~निधि कुंवराणी