कविता

ना मिला

मुस्कराते चेहरे के पीछे
छीपा गेहरा दर्द मिला

जिसके इंतझार था हमे
सालो से वो ना मिला

किनारा तो पास हि था
डूबती कश्ती को, ना साथ मिला

अंधेरो मे ढूंढ रहे थे
वो उजाला कहीं नही मिला

प्रश्न तो थे दिल मे कहीं
जवाब उनका कहीं ना मिला

मौतकी ख्वाहिश कि
पर वो भी ना मिला

जिंदगी का हर एक पेहलूँ
यूँ ही सदा,दर्द सा चला

चाहत थी हमे बसंत की
पर हर मौसम बेदर्द मिला

~निधि कुंवराणी

निधि कुंवराणी

कवयित्री निधि कुंवराणी बोटाद, गुजरात की रहने वाली है। उन्होंने अपना अनुस्नात "अंग्रेजी साहित्य" में किया हुआ है। और वो अंग्रेजी विश्वविद्यालय मे व्याख्याता भी रह चुकी है। उनकी रचनाये देश-विदेश की कई किताबों और पत्रिकाओं में भी छप चुकी है। और उनके साहित्य योगदान के लिए कहीं जगहों पर सम्मानित भी किया गया है।