सर्दी मेंं नहाने पर धमाल
जो लोग गर्मियों मेंं घंटो बाथरूम से निकलते नहीँ थे वे ही अब बाथरूम मेंं घुसने मेंं घंटो लगा देते हैँ
कुछ लोग सर्दियाँ लगते ही रोज़ नहाने के प्रोग्राम मेंं परिवर्तन कर देते हैँ
हमारे एक मित्र दुलाई चन्द वल्द रजाई चन्द नवम्बर मेंं नहाने के बाद सीधे मार्च मेंं ही नहाते हैँ
बदन पर वे कमसेकम ग्यारह वस्त्र धारण किये रहते हैँ
बनियान के ऊपर वे जो स्वेटर पहनते हैँ उसे मार्च मेंं जब उतारते हैँ तो वह स्वेटर उनके बदन से ऐसे चिपका हुआ होता है
जैसे कर्ण के शरीर से कुण्डल और कवच चिपके हुये थे उनके कवच कुंडल उतारने के लिऐ आईं मीन उनका स्वेटर उतारने के लिऐ उसे खुरच खुरच कर उतारना पड़ता है जैसे कर्ण नें अपने कवच कुण्डल कृष्ण भगवान को खुरच खुरच कर उतार कर दिये थे
मेरे एक मित्र बोले लोग ना जानें कैसे पन्द्रह पन्द्रह दिन नहीँ नहाते हैँ मुझे तो आठ दिन मेंं ही खुजली होंने लगती
वैसे कुछ लोग दूसरों को नहाया हुआ देख कर ख़ुद को भी नहाया हुआ मान लेते हैँ
और कुछ लोग जल दर्शन करने को ही स्नान मां कर चलते हैँ
एक सज्जन कह रहे थे अरे भई नहाने की इतनी भी बेकरारी है भई जब तुझे लेके जाएँगे नहला कर ही ले जाएँगे
खुजलियाँ जब आठ दिन तक ना रुकें आदमीं को तब नहाना चाहिऐ
तो भाईयो ये था स्नान पुराण ज़ीवन मेंं नहाने का जितना महत्व है उससे ज्यादा ना नहाने का भी है
वैसे लोग हरिद्वार , प्रयाग , वाराणसी , चारों धाम और सभी तीर्थों और कुम्भ के मेलों मेंं नहाने ही तो जाते हैँ जैसे हम अभी हरिद्वार मेंं आये हुये हैँ
— डॉ रमेश कटारिया पारस