कुहुक- कुहुक कोयलिया बोले
उपवन-उपवन शाखा- शाखा ,कुहुक- कुहुक कोयलिया बोले
मीठे- मीठे गीत सुनाकर, आमों में मीठा रस घोले ।
आम्र वृक्ष फल-फूल रहे हैं ,हरियाली हर ओर छा रही ।
वात बह रही मदिर मदिर जब,हाय!सजन की याद आ रही।
अंग-अंग पुलकित धरणी का ,अरु अम्बर छाई उमंग है ।
लहर-लहर आनन्दित करती ,सागर में उठकर तरंग है ।
पावन रुत की छटा सुहावन,डोल रहा मन पवन हिंडोले ।
उपवन-उपवन शाखा- शाखा ,कुहुक- कुहुक कोयलिया बोले ।
अमराई में रंग- बिरंगे ,भांति- भांति के पुष्प खिले हैं ।
दिशा दिशा से चंचल पक्षी,करे चकित यूं यहां मिले हैं ।
प्राकृतिक अद्भुत सुंदरता ,सृष्टि गहन विस्तार लिए है।
मुग्ध करे यह दृश्य मनोहर,हृदय उतारे नयन दियें हैं ।
स्वर्णिम इन अनमोल पलों में, चहक कोकिला इत उत डोले ।
उपवन-उपवन शाखा- शाखा ,कुहुक- कुहुक कोयलिया बोले ।
— रीना गोयल