कविता

विजय दिवस

का = कायर शत्रु ने पृष्ठ घात करर

र= रचा व्यूह कश्मीर पर

गि = गिरिश्रृङ्गो की ओट से गीदड़
ल = ललकारा रण वीर पर
वि = विपुल दामिनी दमक उठी
ज = जब हिन्दुज ने हुँकार भरी
य = यमग्रास हो गए पाक के पिल्ले
दि = दिखी पराजय द्वार खड़ी
व = वही पराक्रम वही शौर्य मैं
स = सबको याद दिलाता हूँ
“विजय दिवस” पर सेना के
चरणों में शीश झुकाता हूँ ।

समर नाथ मिश्र