वियोग
जो चला गया उस पार,
कभी इस पार नहीं वो आता है।
उसकी स्मृति में विपुल दीप,
हिय के प्रांगण में जलते हैं।
उससे मिलने की आशा में,
बहु स्वप्न अधूरे पलते हैं।
किस लोक गया है यान,
विकल मन समझ नहीं यह पाता है।
जो चला गया उस पार,
कभी इस पार नहीं वो आता है।
उसने मुझको था वचन दिया,
वो मुझसे दूर न जाएगा।
मेरे जीवन का साथी है,
पग-पग पर साथ निभाएगा।
वो विहग पिंजरा छोड़ गया,
उससे अब कैसा नाता है?
जो चला गया उस पार,
कभी इस पार नहीं वो आता है।
कोयल की मीठी तान मुझे,
उसके समीप ले जाती है।
वो प्रणय-पुकार पपीहे की,
मन को व्याकुल कर जाती है।
भेजे अगणित संदेश मौन,
प्रतिउत्तर कभी न आता है।
जो चला गया उस पार,
कभी इस पार नहीं वो आता है।
मोहक उपवन के किसलय पर,
वह करता थिरक-थिरक नर्तन।
शशि की किरणों की आभा में,
धारण करता वह श्वेतवसन।
धीमी गति से बहता समीर,
उसकी सुगंध बिखराता है।
जो चला गया उस पार,
कभी इस पार नहीं वो आता है।
सुधियों की छाया में बजते,
हिय की वीणा के सप्त तार।
रागिनियाँ सदा बुलाती हैं,
धीमे-से उसको ही पुकार।
छवि हो उठती साकार,
मगन मन गीत प्रेम के गाता है।
जो चला गया उस पार,
कभी इस पार नहीं वो आता है।
रजनीगंधा का मृदु सौरभ,
हिय में अनुराग जगाता है।
जूही के फूलों में छिपकर,
वह मधुमय राग सुनाता है।
मन में होता आभास,
कहीं वह प्रीतिसुधा छलकाता है।
जो चला गया उस पार,
कभी इस पार नहीं वो आता है।
कैसा निर्मम प्रभु का विधान!
विधि का यह रचा खेल सारा।
लौटती नहीं बढ़कर आगे,
सरिता में बहती जलधारा।
डाली से टूटा पुष्प,
नहीं फिर डाली पर खिल पाता है।
जो चला गया उस पार,
कभी इस पार नहीं वो आता है।
रचनाकार—-निशेश अशोक वर्धन
उपनाम—निशेश दुबे
ग्राम+पो–देवकुली
थाना—ब्रह्मपुर
जिला—बक्सर(बिहार)
पिन कोड—802112