सार छंद गीत : मां ममता की मूरत
झाँके मन में साया मां का, जब मैं हँसती, गाती।
तेरी यादों की फुलवारी, मन अँगना खिल जाती।
दिनकर से भी प्रथम भोर में, माँ मेरी जग जाती।
सुघड़, सुशील कहाती गृहिणी, सब दायित्व निभाती।
दिवस रैन तक श्रम थी करती, कामों में रत रहती।
थक कर चूर भले हो जाती, मुख पर शिकन न लाती।
भोली-भाली सूरत माँ की देवी सम बन जाती ।
तेरी यादों की फुलवारी, मन अँगना खिल जाती।
स्नेह सिक्त मृदु भाव अधर धर, जब माँ भात पकाती।
हौले – हौले मार फूंकनी, चूल्हे को सुलगाती।
बेलन, चिमटा, अरु चकले सँग, जाने क्या बतियाती।
फिर माँ मुझको गोद बिठाकर, इक इक कौर खिलाती।
क्षुधा शान्त कर हिय की मेरे, सदा मात मुस्काती
तेरी यादों की फुलवारी, मन अँगना खिल जाती।
हरि भजन में रत होकर जब, मात बेलती रोटी।
बड़े बड़े सुख पा लेती माँ, उन खुशियों में छोटी।
प्रेम परोस ही रख देती माँ, उस सादे खाने में।
तृप्त आत्मा तक कर देती, वो स्नेह लुटाने में।
अन्नपूर्णा ही स्वयं बनकर, अमृत भोज बनाती।
तेरी यादों की फुलवारी, मन अँगना खिल जाती।
— रीना गोयल ( हरियाणा)