भगवान श्री राम राष्ट्र के आधार सेतु हैं
५७० वर्षों के बाद आज वह पुण्य दिन आ रहा है जब भारतवर्ष के जन-जन के आराध्य भगवान श्री राम का भव्य मंदिर निर्माण का कार्य हो रहा है। यह भारत का स्वर्ण काल है। भगवान श्रीराम केवल मर्यादा पुरुषोत्तम ही नही अपितु राष्ट्र की संस्कृति, सभ्यता, सम्बोधन, समन्वय अभिव्यक्ति, अभिवादन के पर्याय हैं। भारतीय धर्म संस्कृति में भगवान राम आदर्श व्यक्तित्व के प्रतीक हैं। श्री राम के आदर्श लक्ष्मण रेखा की उस मर्यादा के समान है जो लांघी तो अनर्थ ही अनर्थ और सीमा की मर्यादा में रहे तो खुशहाल और सुरक्षित जीवन। परिदृश्य अतीत का हो या वर्तमान का, जनमानस ने रामजी के आदर्शों को खूब समझा-परखा है लेकिन भगवान राम की प्रासंगिकता को संक्रमित करने का काम भी किया है।
श्री रामजी का पूरा जीवन आदर्शों, संघर्षों से भरा पड़ा है उसे अगर सामान्यजन अपना ले तो उसका जीवन स्वर्ग बन जाए। लेकिन जनमानस तो सिर्फ श्री रामजी की पूजा में व्यस्त है, यहां तक की हिंसा से भी उसे परहेज नहीं है। श्री राम सिर्फ एक आदर्श पुत्र ही नहीं, आदर्श पति और भाई व मित्र भी थे। आज न तो कोई आदर्श पति है और न ही आदर्श पुत्र या भाई अथवा मित्र है। ज्यो व्यक्ति संयमित, मर्यादित और संस्कारित जीवन जीता है, निःस्वार्थ भाव से रहता है। उसी में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदर्शों की झलक परिलक्षित हो सकती है। भारत में राम एक ऐसा नाम है जो अभिवादन या नमस्कार का पर्यायवाची है। हिमालय से कन्याकुमारी तक ही नहीं अपितु सुदूर पूर्व के कई देशों में भी राम और रामायण असाधारण श्रद्धा के केंद्र हैं। राम प्रतिनिधित्व करतें हैं मानवीय मूल्यों की मर्यादा का। रामकथा के सैकड़ों संस्करण हैं जिनके लेखकों को श्रीराम के ईश्वरत्व पर पूर्ण विश्वास था लेकिन उन सब ने श्रीराम का चित्रण एक मनुष्य के रूप में ही किया। वे सामाजिक हैं, लोकतांत्रिक हैं. वे मानवीय करुणा जानते हैं। वे मानते हैं- ‘पर हित सरिस धरम नहीं भाई..राम देश की एकता के प्रतीक हैं. महात्मा गांधी ने राम के जरिए हिन्दुस्तान के सामने एक मर्यादित तस्वीर रखी. गांधी उस राम राज्य के हिमायती थे, जहां लोकहित सर्वोपरि हो. इसीलिए लोहिया भारत मां से मांगते हैं- ‘हे भारत माता हमें शिव का मस्तिष्क दो, कृष्ण का हृदय दो, राम का कर्म और वचन दो’। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम समसामयिक है।भारतीय जनमानस के रोम-रोम में बसे श्रीराम की महिमा अपरंपार है। श्री राम का जीवन आम आदमी का जीवन है। आम आदमी की मुश्किल उनकी मुश्किल है.जब राम अयोध्या से चले तो साथ में सीता और लक्ष्मण थे। जब लौटे तो पूरी सेना के साथ। एक साम्राज्य को नष्ट कर और एक साम्राज्य का निर्माण करके. राम अगम हैं संसार के कण-कण में विराजते हैं। भगवान श्री राम राष्ट्र के आधार सेतु हैं। भगवान श्रीराम का मंदिर जन्मस्थान पर बनने से भारत की अस्मिता व संस्कृति पुनः अपने गौरव को प्राप्त करेगी।
महोदय,
श्रीराम से स्नेह क्यों ? श्रीसीता से क्यों नहीं ?
….और ‘वाल्मीकि रामायण’ के रचनाकाल क्या है ? पुख्ता साक्ष्य देंगे !
मैं अंधश्रद्धा के पक्षधर नहीं हूँ और स्नेह बच्चों से रखी जाती है !
2 बार ‘राम’ कहने से, अर्थात राम-राम !
तो इनके अर्थ बदल जाते हैं !
महोदय,
मौलिक इतिहास में लाखों वर्ष पूर्व की सभ्यता-संस्कृति के बारे में उल्लिखित नहीं है, तथापि श्रीराम कथा को लेकर चलते हैं, तो श्रीराम को भगवान कहूँ या पुरुषोत्तम ! वैसे उनके प्रसंगश: कई घटनाएँ ऐसी है कि उन्हें ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ कहने पर ठिठक जाता हूँ !
अपेक्षा थी कि आप दोनों पक्ष रखते, लेखक को अंधश्रद्धा से बाहर आनी चाहिए !
आदरणीय श्री राम को यदि जानना है तो सन्देह से नही स्नेह से जाने।
श्री बाल्मीकि रामायण को स्वविवेक से इतिहास मानकर पढ़ें सारे संसय समाप्त हो जाएंगे। और जो बात आपने कही है उसका मैं आगे से पालन करूँगा।