मुक्तक/दोहा

दोहे – सखे !

इतनी होती है सखे , तेज कलम में धार ।
पहुँचा सकती कल्पना , सात समंदर पार ।।
रिश्तों में मत खींचना , तुम लम्बी दीवार ।
वरना दुख देगी सखे , छोटी बड़ी दरार ।।
सुननी है तो सुन सखे , आज काम की बात ।
अपनापन रखना सदा , नहीं मिलेगी मात ।।
बच्चों की मुस्कान तो , लेती दिल को जीत ।
इसीलिए रखना सखे , इनसे गहरी प्रीत ।।
सेवा से बढ़कर सखे , नहीं जगत में धर्म ।
वो ही नर इंसान है , जो यह जाने मर्म ।।
— नवीन गौतम

नवीन गौतम

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