गीतिका
हमारी अर्चना स्वीकार कर लो
हृदय की कल्पना साकार कर दो
हम अपनी शाख से बिछड़े हुए हैं
हमें अपने गले का हार कर लो
असीमित प्यार की देवी हो तुम तो
उपेक्षित हम हैं हमसे प्यार कर लो
हमारी भावना वश में नहीं है
तुम्हें भाये तो अंगीकार कर लो
तुम्हीं से ‘शान्त’ हम माँगें तुम्हीं को
हमारी सोच का विस्तार कर दो
— देवकी नन्दन ‘शान्त’