कहानी

जीवन के रंग

उमा बाग में बैठी अतीत में इस तरह खो जाती थी कि उसे समय का ध्यान ही नही रहता था। हमेशा घर की नौकरानी उसे दीदी-दीदी कहती तो वह वर्तमान में लौट आती।उमा को उसकी मीठी आवाज किसी की याद दिला जाती थी।वह हमेशा अपनी बेटी रूपा को याद करती थी,पर रूपा ने मुड़कर कभी अपनी माँ को नही देखा था।उमा ने उसे लाख बार अपनी मजबूरी बताई थी कि मैं एक अकेली औरत हूँ। तुम्हारे पापा मुझे छोड़कर जा चुके हैं।जब तुम मात्र चार साल की थी।मैंने अकेले ही बड़ी मुश्किल से तुम्हारा पालन-पोषण किया था।अगर मै पढ़ी-लिखी ना होती तो तुम भी मेरे साथ सड़को की खाक छान रही होती।पर तुम समझी कहाँ थी?तुम भी अपने पापा की तरह ही जिद्दी थी।उसी की तरह जल्दी फैसला लेना तुम्हारे व्यक्तित्व में साफ झलकता था।धैर्य का अभाव तुम दोनों के व्यक्तित्व का खास पहलू था।वही चंचलता,वही हठीलापन और क्या-क्या बताऊँ? तुम्हारी सारी आदतें तुम्हारे पापा से मेल खाती थी। मैं यही तो चाहती थी,तुम आवेश में आकर कोई निर्णय मत लो।पर तुमने मेरी एक न सुनी थी।
तभी दीदी-दीदी क्या आपके लिए चाय बना लाऊं? हाँ,पर कम मीठी।दीदी आप मीठा बहुत कम लेती हो।ऐसी बात नही है।चाय तो कम मीठी ही सही रहती है।तुम्हारी मीठी-मीठी बातें चाय को वैसे ही बहुत मीठा बना देती है।क्या दीदी मैं सचमुच इतनी मीठी बातें करती हूँ?हाँ-हाँ बहुत मीठी हो तुम।दीदी आप बाग में चलो।मैं पौधों की कटाई का समान लेकर आती हूँ।आप हर सोमवार को बाग की सफाई करती हो ना।तुम्हे याद रहता है,हमेशा मुझे क्या चाहिए क्या नही?हाँ दीदी याद तो रखना ही पड़ता है।
पतझड़ के कारण,बाग़ में चारो ऒर पत्ते ही पत्ते दिखाई दे रहे थे।उमा को पतझड़ का मौसम कभी अच्छा नही लगा।वह फिर रूपा को याद करने लगी। हमेशा अपनी मर्ज़ी का जीवन जीती थी।उसने कभी माँ की परवाह नही की थी।मेरे मना करने के बाद भी उसने प्रेम-विवाह कर लिया था। जब मैंने उससे कहा कि तुमने मुझसे बिना पूछे ये क्या कर दिया?उसने सिर्फ इतना ही कहा था कि-माँ ये मेरा जीवन है,इसमें रंग भरने का अधिकार भी मेरा है।आप अपने जीवन के रंगो की परवाह करें कहते-कहते वह चुप हो गई थी।मैं उसका जवाब सुनकर दंग रह गई थी!दीदी,मैंने बाग के सारे पत्ते बुहार दिए है। दीदी,देखो आपके लगाए फूलों के रंग कितने खिल गए?देखो दीदी,लाल,पीले फूल खूब चमक रहे है।जैसे इन फूलों मैं आज ही नए रंग भरे हो।फूलो की नई कपोलो को देख कर उमा को बड़ा सुकून मिल रहा था। वह भी अपने जीवन में नए रंग भरेगी। वह यही सोच रही थी कि तेज हवा के झोकों ने उसके मन को शीतल कर दिया था। वह कभी अपने पति,अपनी बेटी तथा अपनी नौकरानी का चेहरा देख रही थी,बन्द आँखों से।अब वह खुश थी कि जीवन के सभी रंग निराले होते हैं।

राकेश कुमार तगाला

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