कविता

जीवन की गाड़ी फिर से पटरी पर होगी

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आज गम है जीवन में कल खुशी भी होगी
तनिक ठहरो उदास चेहरों पर हँसी भी होगी
ये लम्हे जो तुमको लग रहे हैं आज कठिन
राहें चार कदमों के बाद आसान भी होगी।

कुछ सपने जो देखे हैं तुम्हारी आंखों ने
मंजिलें पाने की जिद की है ख़्वावों ने
थोड़ी सी मेहनत और कर तू लगन से
सब अधूरी तेरी तमन्ना हाँ पूरी भी होंगी।

कभी सोचा था विकसित शहरों में रहना
आज फिर चाहा है लौटकर गाँव में रहना
फिर खेतों में डालेंगे बीज चलाकर हल से
लहलहाएगी फसल, खुशहाली भी होगी

मजबूर हैं आज मजदूर इस महामारी में
परेशान हैं दो जून की रोटी को जुटाने में
सड़कों पर भटकने को आज मजबूर है
उतरी गाड़ी कल फिर से पटरी पर होग

जूली परिहार

टेकचंद स्कूल के पास अम्बाह, मुरैना(म.प्र.) मोबाइल नं-8103947872 ईमेल आईडी[email protected]