कविता
पर्वत , नदियाँ ,पवन घटाए
ये प्रकृति की अनुपम राहें
हर रंगों में ये है ढले
हर मुश्किल में साथ खड़े
लाख आपदाये आये
फिर हो जाते हरे भरे।
साहस इनमे दृढ पर्वत सा
गहराई सागर सी युक्त
कुंठित नही ये जीवन से होते
हर रंगों में है ये ढले।
पतझड़ , सावन हो या बसंत
हर ऋतु में ये भरते तरंग
भूस्खलन हो या बहे पवन
हर दिन आये नयी उमंग।
पाहन, प्रस्तर से टकरायें
ये चुन लेती अपनी राहें
कभी न यूँ निराश हुए है
जीवन जीना इनसे सीखें।
ठोकर इन्हें लगे कितनी भी
वही हरियाली ,नीर ही नीर
धैर्य है जीवन ये कहते है
नही रखते है मन में कोई पीर
कठिनाइयों से जीवन भर जाये
जीना मुश्किल दुभर हो जाये
जब जीवन व्यर्थ लगे
जीने का ना अर्थ रहे ।
तब तुम प्रकृति पठारों से सीखो
पर्वत नदी पहाड़ों से सीखो
हर आपदाओं में डटे रहे हैं
कैसे तनकर खड़े रहे हैं
हम इंसान भी ऐसे बने
आओ दृढ संकल्प करें
सुख हो या दुःख हँसते रहें
जीवन में न हताश रहें।
— ऋतु ऊषा राय