रूठ गए श्याम मेरे,
कैसे मैं मनाऊँगी?
भई आधी रतिया है,
मैं घर कैसे जाऊँगी?
राधा नाहीं गोपी नाहीं,
मीरा मैं बन जाऊंगी।
विष का ये प्याला सखी,
हँसके मैं पी जाऊँगी।
रूठ गए श्याम मेरे…
मोह माया संग,
मम ऐसा उड़ा रे।
भई तोसे दूर मैं तो,
कैसे तुझे पाऊँगी?
रूठ गए श्याम मेरे…
तेरी मीठी बतियों में,
मन ऐसा बंधा रे।
नेह के ये बंधन सारे,
मैं कैसे सुलझाऊँगी?
रूठ गए श्याम मेरे…
रूठ गए श्याम मेरे,
कैसे मैं मनाऊँगी?
भई आधी रतिया है,
मैं घर कैसे जाऊँगी?
रूठ गए श्याम मेरे…
— ज्योति अग्निहोत्री ‘नित्या’