हास्य व्यंग्य

व्यंग्य- सात दशक की स्वतंत्रता और चंदु भैया की शोध डायरी

हमारे चंदू भैया सामाजिक और साहित्यिक जीव है और उनका जन्म भी हमारी तरह स्वतंत्र भारत में हुआ इसलिए उनने भी बचपन में पुस्तकों में पढ़ा और अध्यापकों से सुन रखा था कि भारत स्वतंत्र है। तभी से उनको ये आभास होने लगा था कि भारत में रहकर वो जो मर्जी आए, कुछ भी कर सकते है। वे बचपन से ही स्वतंत्रता का उपयोग करते भी थे पर उनको कई बार लगता था कि भारत के लोग कुछ ज्यादा ही स्वतंत्र हो गये है। इस ज्यादा स्वतंत्रता के बारे में उन्होंने हिंदी का शब्द कोश तलाशा तो उनको शब्द मिला स्वच्छंदता। इसी तलाश के चलते यह स्वतंत्रता कब और कैसे स्वच्छंदता में परिवर्तित हो गयी ये न कभी उनने पढ़ा और न ही सुना पर महसूस कर रहे थे।

स्वतंत्रता का स्वच्छंदता में बदलना एक गहन शोध का विषय है। पर भारत में शोध बिना सरकारी सहायता के संभव नहीं है और कोई भी सरकार स्वतंत्रता के स्वच्छंदता में बदलने के कारण पर शोध करवाने में कोई रुचि नही रखती और ना कोई भविष्य में इस तरह की संभावनाएं दिखाई देती है। कारण कोई भी विश्वविद्यालय इस तरह के शोध के लिए अनुमति देने को तैयार नहीं है, और न ही कोई प्राध्यापक इस विषय पर मार्गदर्शक बनने को राजी है। क्योंकि इस विषय में जानते समझते सब लोग है। पर कोई भी व्यक्ति लिखित में इसको प्रुफ करने की जोखिम नहीं उठा सकता। जो जोखिम उठाएगा सबसे पहले उसी की कलाई खुलेगी ये भी तय है।

इसलिए भारत में स्वतंत्रता है या स्वच्छंदता यह समझने के लिए चंदू भैया ने एक दिन अपने विवेक का उपयोग करके अपने आसपास नजरें दौड़ाई और प्राइवेट तरीके से शोध करने का मन बनाया। जिसे चंदू भैया ने अपनी डायरी में नोट भी किया। आइए देखते है सात दशक की स्वतंत्रता को दौरान चंदू भैया की शोध डायरी के सात स्वतंत्र पृष्ठ जहॉ हम सब परतंत्र है।

पहला पेज- सुबह नज़रें अपने घर बाहर की सड़क पर गई जहॉ लोग आम दिनों की तरह ही आ-जा रहे थे कि अचानक स्वतंत्र भारत में जन्में कुछ स्वतंत्र युवा मोटर सायकिलों पर लदे एक बाद एक दनादन नारेबाजी करते हुए गुजरे और मोटर सायकिलों के बिना बंसी के सायलेंसरों की गर्जना से सारा मोहल्ला उन युवाओं को देखने के लिए घर के खिड़की दरवाजों पर खड़ा हो गया। कोई बात मुझे समझ आती इससे पहले ही एक पुतले को चौराहे पर खड़ा कर उन युवाओ ने मुर्दाबाद के नारों के बीच आग लगा दी। वे युवा स्वतंत्र थे और स्वछंद आचरण कर प्रसन्न थे। पास खड़े पुलिस के जवान स्वतंत्र आचरण को स्वच्छंद आचरण में परिवर्तित होता देख कर भी मूक बने रहे। यदि वे स्वतंत्रता और स्वच्छंदता का फर्क उन युवाओं को समझाते तो हो सकता था कि उनकी स्वतंत्रता बाधित हो जाती।

दुसरा पेज- आज जिला अधिकारी के आफिस में जाना हुआ। आफिस खुलने का समय बाहर दीवार पर लिखा था प्रातः 10:30 बजे । मै बारह बजे गया फिर भी न साहब थे और न ही उनके बाबु । चपरासी ने बताया साहब तो शाम को चार बजे तक आते है और साड़े चार बजे चले जाते है। हॉ बाबु लंच के बाद तीन बजे आएंगे और पांच बजे तक रुकेंगे। तब तक आपको रुकना होगा। अब मैं बाहर अर्दली में बैठा सोच रहा था कि ये स्वतंत्र भारत के कर्मचारी है या स्वच्छंद भारत के। असली स्वतंत्र तो ये लोग है जो अपनी मर्जी से आफिस आते है और अपनी मर्जी से जाते है। जनता तो इनके एक दस्तखत के लिए सारा दिन अपनी स्वतंत्रता का त्याग कर देती है।

तीसरा पेज- आज कुछ रुपयों की जरुरत पड़ी तो बैंक जाना हुआ। सरकारी अफसरों की स्वतंत्रता के बाद बैंक की स्वतंत्रता का आलम बड़ा निराला है। बैंक में कैश काउंटर की अधिपति याने कैशियर देवी की दादागिरी देख कर तो लगा कि इसे कहते है। स्वतंत्रता और कुर्सी का नशा। हैड कैशियर और बैंक के शीर्ष अधिकारी उस देवी के स्वच्छंद आचरण के आगे नत मस्तक और पर परतंत्र दिखे। प्रबंधक के चार मौखिक और एक बार लिखित आदेश को भी वो कचरापेटी के हवाले करने का साहस रखती है। जिसे देख कर लगा की स्वतंत्र भारत में इन कम नम्बरों से पास बैसाखी के सहारे कुर्सी पर बैठे कर्मचारियों के सामने योग्यता घुटने टेकती है।

चौथा पेज- स्वतंत्र भारत जनता अपनी सरकार खुद चुन सकती है। मैने भी युवा होते ही सरकार चुनना शुरू कर दिया था अट्ठारह पुरे होते ही पहली बार मतदान किया और अपनी सरकार भी चुनी मैने जिसको चुना वह मंत्री बन गया। जब तक वो चुनाव में उम्मीदवार था। वो और मै दोनों स्वतंत्र थे पर जैसे ही वो चुनाव जीता और मंत्री बना स्वच्छंद हो कर विधान परिषद में उड़ान भर रहा है। और मै अपने मोहल्ले में खुदी हुई सड़को पर चलते हुए खुद को डरा हुआ और परतंत्र महसूस कर रहा हूँ। मै जानता हूँ कि स्वतंत्रता के अधिकार के तहत चुने गए मंत्री जी ने अपनी पूरी स्वतंत्रता का उपयोग किया और अपने समर्थकों या मित्र मंडली वालों के लिए स्वतंत्रता के द्वार खोल दिए तो मेरी हालत भी मोहल्ले की सड़क की तरह हो सकती है। मै अगले चुनाव की प्रतिक्षा कर रहा हूं ताकि फिर से एक बार स्वतंत्र होने का अवसर मुझे मिले।

पांचवा पेज- टीचर से लेकर स्टूडेंट और पब्लिक स्कूल से लेकर कोचिंग इंस्टिट्यूट तक स्वतंत्रता का गजब का खेल है। टीचर क्लॉस में न हो तो बच्चे स्वतंत्रता ही नही स्वच्छंदता का आनंद लेते है। प्रिंसीपल न हो तो टीचर स्वच्छंद होते है। पब्लिक स्कूल तो वैसे भी स्वच्छंदता के अखाड़े से कम नहीं है। जहॉ सरकार के लाखों खर्च होते है और टॉप करते है इंग्लिश मिडियम के कोचिंग इंस्टिट्यूट में पढ़ने वाले बच्चें।सरकार का पैसा केवल गणना के लिए मास्टरों को दिया जाता है। स्कूल में रहो तो बच्चो को गिन लो नहीं तो जनगणना, पशुगणना, बीमारगणना, वोटरलिस्ट बनाना आदि स्वतंत्र कार्य करो। जो कि वे स्वच्छंद होकर करते है। और पढ़ाई में सफलता का झंडा कोचिंग इंस्टिट्यूट वाले बड़े-बड़े विज्ञापन देकर लहराते है। यही स्वतंत्रता है वे घोषित करते है हम स्वच्छंद है।

छठा पेज- अस्पतालों के मामले में सरकारी हो या प्राईवेट दोनों की स्वतंत्रता से जन जन का पाला पड़ा होता है। सरकारी अस्पताल में तो वार्डबॉय से लेकर सर्जन तक सब स्वतंत्र होते है। और वहॉ आए मरीज की आत्मा को शरीर की कैद से मुक्त करवाने के लिए अपना असहयोग देकर पुरा प्रयास करते है। प्राईवेट अस्पतालों में स्वतंत्रता का आलम गज़ब का होता है। यहॉ के डाक्टर मरीज की आत्मा को मरने के बाद भी शरीर से स्वतंत्र नहीं होने देते। बल्कि मरीज के परिजनों को आर्थिक रुप से स्वतंत्र करने का प्रयास जरुर करते है। दोनो जगह डॉक्टर स्वतंत्र होते है। और स्वच्छंदता से अपना कर्म करते है।

सातवां पेज- बोलने की स्वतंत्रता सबको मिली है। जिसे जो समझ पड़े वो सार्वजनिक रुप से बोलने के लिए स्वतंत्र याने स्वच्छंद है। कोई भी खुल कर किसी को पप्पु कह सकता है। फेंकु कह सकता है। सामने न कह सकने वाली बात इशारों की भाषा में कह सकते है। पर अपनी पत्नी के सामने न मैं बोल पाता हूं और इशारों की भाषा में बच्चों को संबोधित करते हुए कुछ कह पाता हूँ। स्वच्छंदता तो दूर सही से स्वतंत्रता का भी उपयोग नहीं कर पाता हूँ। कईं बार लगता है चाहे भारत स्वतंत्र है पर पत्नी के आगे संतरी से लेकर मंत्री । चपरासी से लेकर अधिकारी तक सब परतंत्र है। और पत्नी स्वच्छंद है।

नेता से लेकर अभिनेता तक और शिखर से लेकर तलहटी तक जहां भी नजर दौड़ आएंगे आप हर किसी को स्वच्छंद पाएंगे यह तो बानगी है पर स्वच्छंदता अलग-अलग स्तर पर अलग-अलग तरीके से दिखाई देगी स्वतंत्रता के नाम यहां हर कोई स्वच्छंद है।

— संदीप सृजन

संदीप सृजन

संपादक-शाश्वत सृजन ए-99 वी.डी. मार्केट, उज्जैन (म.प्र.) मो. 9406649733 मेल- [email protected]

One thought on “व्यंग्य- सात दशक की स्वतंत्रता और चंदु भैया की शोध डायरी

  • अनंत पुरोहित 'अनंत'

    Lajwab srijan. aapki lekhani ko naman. Maza aa gaya padhkar.

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