मेघा
अरावली के उत्तुंग शिखर,
मेघा फिर-फिर आते है।
बैठ पहाड़ी के कंधे पर,
सावन का गीत सुनाते है।
बंग खाड़ी से आये मेघा,
भारत भ्रमण राग सुनाते है।
लौटे हिम संदेशा लेकर,
गर्जन से खबर सुनाते है।
लौट पहाड़ों के कंधो पर,
मार्ग की थकन मिटाते है।
हँसते जाते,कहते गाते,
वृक्षों से पाँव दबाते है।
होकर खुश सेवा से मेघा,
अपना अमृत दे जाते है।
मरुधरा की सूनी कलाई,
मेघा राखी से बंध जाते है।
मेघो में छिप-छिप दामिनी,
जीवन में आशा भर जाती।
मेघों के संग चली हवाएँ,
जीवन की तान सुना जाती।
वन पहाड़ खेतों में मेघा,
झूम-झूम के गाते है।
लिपट नवयौवना के अंगो से,
कामदेव को ललचाते है।