गीत/नवगीत

कविता : कलयुगी संतान

पहले के श्रवण मात-पिता को कावड काँधे धार रहे,
आज के श्रवण मात-पिता को देखो ठोकर मार रहे-2

दुष्ट दुशासन सारी खींचे द्रोपदी बहन बेचारी की,
आकर के सारी को बढाया लीला थी गिरधारी की!
कलयुग के ये भाई कन्हईया बहन का चीर उतार रहे!
आज के श्रवण मात-पिता को देखो ठोकर मार रहे।

पहले की बीवी सावित्री पति के प्राणों को लाई है,
आज की पत्नी पति ऊपर अब छुरिया रही चलवाई है!
आज लखन भाबी के संग मन्दिर मे भामर डाल रहे!
आज के श्रवण मात-पिता को देखो ठोकर मार रहे।

(आजकल कलेजे को हिला देते हैं लोग,
भाई को हस के जहर पिला देते ह लोग)

पहले के भैया लखन हुए जो भाई के हित सब त्याग दिया,
जीवं भैया भबी की सेवा मे यार गुजार दिया!
अब कुछ पेसौ की खातिर सब राम को गोली मार रहे।
आज के श्रवण मात-पिता को देखो ठोकर मार रहे।।

— संजय सिंह

संजय सिंह मीणा

गांव -फकीरपुरा जिला- करौली (राजस्थान)