शख्सीयत
कुछ चेहरे उभर आते हैं अंज में मिसाल बनकर,
जो तूफानों में भी रोशनी बिखेरते मशाल बनकर।
हैरानियां बढ़ जाती है अक्सर मेरी,
कुछ लोगो की अदीब शख्सियत पढ़कर।
जिनकी हरकतें भी उम्दा होती है,
साथ बरकतें भी उम्दा लोगो को गढ़कर।
हुनर और इख्लास जो नहीं पैदा करते खुद में,
वो छोटे ही रह जाते है बादलों पर भी चढ़कर।
लाख चाहूं पर कैसे लिख दूं मैं नफरतें,
देखी हो जब नजरों ने मोहब्बत जी भरकर।
सत्ता के गलियारों में मुल्क मुल्क बोलते जो,
बांटते वही इसको खुद को इसका रहनुमा कहकर।
मुख़्तलिफ़ होना हर बार अजीब नहीं होता,
क्योंकि हर कोई उभरता नहीं शोर में आवाज बनकर।
— सुष्मिता सिंह