ग़ज़ल
ख़्वाब में ही सही मुस्कुरा दीजिए,
दर्द-ए-दिल आके मेरा मिटा दीजिए।
हर चमन आज फूलों से सज्जित हुआ,
मन चमन को भी मेरे सजा दीजिए।
जिंदगी तेरी राहों में बिखरी- सी है,
यह सिमट जाए इसका पता दीजिए।
चाँद को देर तक मैं निहारा करुँ,
चाँदनी मेरी छत पर बुला दीजिए।
आप मेरी खताओं से वाकिफ़ तो हैं,
आईना आईने को दिखा दीजिए।
नूर से जगमगा जा ये रात भी ऐसा,
आँगन में चंदा उगा दीजिए।
ख्वाब में भी बिछड़ने से डरती हूँ मैं,
नींद से आप मुझको जगा दीजिए।
— इंदु मिश्रा ‘किरण’