हरियाली के श्रृंगार
जब से बरसल बा सावन के फुहार,
मौसम में आ गईल बा बहार भौजी।
सब जीव जंतु करत रहलक मनुहार,
काले बदरा बरसईले बौछार भौजी।
सुखल धरती पर गिरते बारिश के बूंद,
खत्म हो गईले सूरज के अंगार भौजी।
अब नईखे कहीं भी सूखा के आसार,
वसुंधरा कईले हरियाली के श्रृंगार भौजी।
बिछते ही धरा पर हरियाली की चादर,
दिखे लगल खूबसूरत घर-संसार भौजी।
मौसम में आवते ही अनुकूल सुधार,
होखे लागल घर-घर पर्व-त्यौहार भौजी।
घर-घर में भईल उमंग उत्साह के संचार,
बदलल व्यक्ति-व्यक्ति के व्यवहार भौजी।
सब कुछ बदल दिहले वर्षा के फुहार,
और बदल गईल भोजन-आहार भौजी।
— गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम